धरती का पहला मानव मूलवासी भारत में नहीं कर पा रहा प्रमाणित अपनी जमीन का दावा
जल, जंगल, जमीन के रक्षक को एनजीओ बता रहे भक्षक
सरकार से ज्यादा वे दोषी जो आदिवासी समाज के वोट से बनते है सांसद व जनप्रतिनिधि
मतदान तो कर रहा लेकिन दावा नहीं कर पा रहा है कि कब से कर रहा निवास
विशेष संपादकीय
संपादक विवेक डेहरिया दुनिया में धरती के पहला मानव के रूप में निवास करने वालो का यदि माना जाता है तो सिर्फ जनजाति, आदिवासी को ही इसका दर्जा दिया जाता है । इसके बाद यदि हम बात करें भारत देश की तो यहां पर आजादी के बाद से जब देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय जी, महामहिम उपराष्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या फिर कोई भी संवैधानिक पदों पर विराजमान यदि आदिवासियों से संबंधित सभा, मंच, कार्यक्रम होता है तो यही कहा जाता है कि हमें जनजातियों से लोकतंत्र सीखना चाहिये और जनजातियों से ही जल, जंगल, जमीन, प्रकृति को बचाना सीखना चाहिये ऐसी अनेक बाते है जिन्हे विस्तृत में लिखने की आवश्यकता नहीं है अभी हाल ही में जनजाति आयोग के स्थापना दिवस पर उपराष्ट्रपति श्री वैंकया नायडू जी का जो व्याख्यान आया था उसमें उन्होंने जनजातियों की एक-एक विशेषताओं को वर्णित करने का प्रयास किया था । उसमें यह भी बताया था कि पं. अटल जी के कार्यकाल में जनजातिय मंत्रालय व आयोग बना था और वही जनजातिय मंत्रालय व भाजपा की सरकार के राज में लाखों आदिवासी परिवारों को बेघर करने का आदेश न्याय के रूप में मिला है । इतना ही नहीं उसके बाद भी यदि हम अधिकतम फैसलों को देखे तो जनजातियों के लिये दु:खदायी होते है ऐसा क्यों ? इसके पीछे कारण यह है कि सम्माननीय न्याय के मंदिर में उनका पक्ष सही तरीके से रखने वाला जवाबदारी व जिम्मेदारी नहीं निभाता है और यही 13 फरवरी 2019 को हुआ । भारतीय जनता पार्टी केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे देश में आदिवासी के बीच में जाकर बजट बढ़ाने की बात बता रहे है । शहीदों की याद में संग्रहालय बनाने की बात कर रहे है लेकिन एक वकील तक प्रधानमंत्री जहां पर लाखों आदिवासियों के साथ न्याय हो सकता था वहां पर पेशी के दिन नहीं पहुंचा पाये आखिर क्यों ?