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डिप्टी कलेक्टर तो बनी पर लक्ष्य है कलेक्टर बनना

डिप्टी कलेक्टर तो बनी पर लक्ष्य है कलेक्टर बनना

सच्ची लगन से मेहनत की जाए तो सफलता जरुर मिलती है। छोटे से गांव धनवासी की ज्योति परस्ते ने यह साबित कर दिया है। ज्योति ने महज 23 वर्ष की उम्र में छोटे से गांव से अपनी ऊंची उड़ान भरने का प्रयास करने वालीअब डिप्टी कलेक्टर की कुर्सी पर बैठकर प्रशासनिक सेवा में कर्तव्य निभायेगी हालांकि ज्योति का लक्ष्य कलेक्टर बनना है । 

डिंडौरी। गोंडवान समय। 
मां चंद्रवती परस्ते जी की चांद सी बेटी और पिता प्रमोद परस्ते जी के जीवन को आनंदमय बनाने वाली बेटी ज्योति का जब जन्म हुआ होगा तो शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि भविष्य में उनकी बेटी शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी ज्योत जलायेगी कि उसकी किरण प्रेरणापूंज बनकर पूरे परस्ते परिवार ही नहीं समाज में भी शिक्षा का उजाला ऐसा फैलायेगी कि उसकी रोशनी की चर्चा दूर दूर लोग करेंगे तो पहले जन्म देने वाले माता-पिता को बधाई देंगे जिससे उन्हें बेटी को जन्म देने पर गर्व का अनुभव जरूर होगा । अपने माता-पिता का नाम गौरवांवित करने के लिये कलेक्टर बनने का लक्ष्य लेकर ज्योति परस्ते ने प्रतिदिन 6.30 साढ़े छह घंटे पूरी लगन मेहतन के साथ अपनी शैक्षणिक पढ़ाई के दौरान ध्यान केंद्रित कर प्रयास किया उसका प्रतिफल आज दिखाई दे रहा है । हम बात कर रहे है डिंडौरी जिले के छोटे से गांव धनवासी में जन्मी ज्योति परस्ते कि जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि सपना देखने में नहीं वरन लक्ष्य बनाकर प्रयास करने से सफलता जरूर मिलती है ।

ज्योति का प्राथमिक शिक्षा से लेकर अमरकंटक तक शैक्षणिक सफर

हम आपको बता दे कि मां चंद्रवती जी जो कि गृहणी के भूमिका निभा रही है तो वहीं पिता प्रमोद परस्ते जी खंड पंचायत अधिकारी के पद शासकीय सेवा में अपना कर्तव्य निभा रहे है उनकी बेटी ज्योति परस्ते का प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा अध्ययन शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर डिंडौरी में किया है । इसके साथ हाई व हायर सेकेण्ड्री स्कूल की पढ़ाई ज्योति ने निर्मल कन्या शाला मण्डला में किया है । वहीं इसके बाद ज्योति ने आगे की पढ़ाई अमरकंटक जनजातिय विश्वविद्यालय से किया है । अपनी पढ़ाई के दौरान ज्योति परस्ते प्रारंभ से ही पढ़ाई की ओर ही ध्यान केंद्रित करते हुये शिक्षण कार्य किया । नियमित अध्ययन के साथ पुनरावृत्ति में विशेष ध्यान देकर लेखन अभ्यास के माध्यम से किया साथ में लक्ष्य बनाकर पढ़ाई किया । अपनी पढ़ाई के दौरान ज्योति ने कठिनाई को कभी तनाव के रूप में नहीं लिया वरन उसे चुनौती के रूप में अथक परीश्रम करते हुये दूर करने का प्रयास किया । पढ़ने के लिये समय सारणी बनाकर अध्ययन किया जिसमें उन्होंने प्रतिदिन प्राता: भोर होने के पहले ही 4 से 6 बजे तक पढ़ना उसके बाद फिर सुबह 8 बजे से 10 बजे तक पढ़ती थी वहीं रात्रि के समय में वह 8 से 10.30 बजे तक अध्ययन करती थी कुल मिलाकर वह प्रतिदिन साढ़े छह घंटे अध्ययन करती रही है और लक्ष्य अभी ज्योति के सामने है क्योंकि उसे कलेक्टर बनना है ।

ज्योति कॉआॅपरेटिव इंस्पेक्टर से अब बनी डिप्टी कलेक्टर 

हम आपको बता दे कि कलेक्टर बनने का लक्ष्य लेकर प्रयास करने वाली ज्योति ने जब पहली बार 2017 में पीएससी की परीक्षा दिया तो वह सफल हुई और कॉआॅपरेटिव इंस्पेक्टर बन गई थी इसके बाद भी ज्योति ने आगे पढ़ने व बढ़ने के लिये प्रयास करना नहीं छोड़ा निरंतर व सतत अध्ययन से दूसरी बार पीएससी की परीक्षा देकर वह फिर सफल हो गई और 2018 में पीएससी की परीक्षा में अब वह डिप्टी कलेक्टर बन गई है लेकिन ज्योति का लक्ष्य कलेक्टर बनने का सामने है जिसे वह चुनौती के रूप में स्वीकार कर सच्ची लगन व कड़ी मेहनत करते हुये सतत प्रयास करने की बात कहती है ।

माता-पिता परिवार व शिक्षकों का मार्गदर्शन से मिली सफलता

ज्योति परस्ते ने प्राथमिक शिक्षा के कार्यकाल से वर्तमान में भी शैक्षणिक कार्य के दौरान आने वाली कठिनाई को कभी तनाव के रूप में नहीं लिया वरन उसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर माता-पिता, परिवार व शिक्षकों के मार्गदर्शन लेकर दूर किया । कठिन विषयों को समझने में शिक्षकों ने हमेशा मार्गदर्शन दिया और उसी आधार पर गहन गंभीरता के साथ समझा । वहीं जयोति परस्ते बताती है कि हमेशा अपेक्षाओं पर खरा न उतरने का डर जरूर बना रहता था लेकिन परिवार का सहयोग व निरंतर अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा से डर अपने आप ही दूर चला जाता था । सबसे पहले ज्योति अपना मार्गदर्शक अपने माता-पिता को बताती है तो वहीं शिक्षक के रूप में सतत मार्गदर्शन व प्रोत्साहन देने में श्री शिवा जी चौधरी सर इग्नू, श्री विजेन्द्र राठौर सर, श्री विनोद सर, श्री नवीन सर, भाई श्री तनुज परस्ते के योगदान को महत्वपूर्ण बताती है ।

रूक जाना नहीं तू कहीं हारकर का संदेश देना चाहती है ज्योति  

शैक्षणिक क्षेत्र में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों में चाहे वह छात्र हो या छात्रा सभी के लिये ज्योति परस्ते यह कहती है कि अपना लक्ष्य सबसे पहले बनाना चाहिये और उसके लिये सतत अभ्यास निरंतर प्रयास करना चाहिये । अब चाहे भले ही ही कठिन परीक्षम करने के बाद यदि असफलता भी मिलती है तो उससे हार कर पीछे हटना नहीं चाहिये वरन असफलताओं से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिये इसके लिये वह कहती है कि रूक जाना नहीं तू कहीं हार के कांटो पर चलके मिलेंगे राह बहार के मतलब यह है कि ज्योति यही संदेश देना चाहती है कि लक्ष्य लेकर प्रयास करो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है । वही ज्योति की रूची सुडोक भरना, बैडमिंटन खेलना, सामाजिक गतिविधियों के साथ साथ वह यू ट्यूब से जरूरी जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रयोग करती है ।

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