चुनाव के पहले कांग्रेस के दीपक बाबरिया को याद आने लगे आदिवासी
बिरसा बिग्रेड के कार्यक्रम में शामिल हुये कांग्रेस महासचिव दीपक बाबरिया
आजादी के बाद सबसे ज्यादा सत्ता संभालने का काम कांग्रेस पार्टी ने किया और कांग्रेस के राजपाठ में आदिवासियों को आखिर क्या मिला पेशा कानून की बात करें तो कागजों से कानून बनने तक में ही वर्षों लग गये और कानून बना तो उसका पालन नहीं करा पाये, आदिवासियों का विस्थापन सबसे ज्यादा कांग्रेस के कार्यकाल में हुआ, सिवनी जिले की ही बात करें तो बरगी बांध और भीमगढ़ बांध से विस्थापित आज भी खून के आंसू बहा रहे है और दर दर की ठोंकरे खा रहे है । जल, जंगल, जमीन से आदिवासियों को महरूम करने में कांग्रेस की मुख्य भूमिका रही है इसलिये कांग्रेस से आदिवासी दूर होता गया यही कारण रहा कि आदिवासी कांग्रेस को कई राज्यों से सत्ता के सिंहासन से गिराकर जमीन पर बिठा दिया है और ऐसा बैठाया है अब कांग्रेसी उठ नहीं पा रहे है । कांग्रेस के जमाने में आदिवासियों को तेंदूपत्ता का बोनस वितरण कार्यक्रम को वन विभाग के अधिकारी कागज में पहले पैंसिल से भरते थे और मार्च में पैन से पूरा करते थे । कांग्रेस के राज में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले कितने आदिवासी वीर सपूतों को शहीदों का दर्जा दिलाया है नाम बता सकती है यदि हम कमलनाथ के गृह जिले की बात करें तो बादलभोई का परिवार अभी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पाने के लिये भटक रहा है तो सिवनी जिले में जंगल सत्याग्रह के दौरान अंग्रेजो की गोली खाने वाले आदिवासी रैनो बाई, बुट्टों, बिरजू भोई, सहित अन्य आदिवासी परिवारों को ताम्रपत्र में भर स्वतंत्रता संग्राम मानकर उनका सम्मान कर पाई है लेकिन उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा नहीं दे पाई आखिर क्यों ? ऐसे अनेक प्रमाण है कांग्रेस के राज में आदिवासियों को मान-सम्मान नहीं मिलने के और आदिवासियों के साथ शोषण अन्याय अत्याचार होने के लेकिन उसके बाद भी कांग्रेस आदिवासियों को अपना सबसे बड़ा हितेषी बताने का कोशिश फिर कर रही है इसके लिये अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और मध्य प्रदेश के प्रभारी दीपक बाबरिया ने उठाया है शायद आजादी के बाद के इतिहास से दीपक बाबरिया जी परिचित नहीं है या जानबूझकर भूल रहे है।
सिवनी। गोंडवाना समय।
देश में सर्वाधिक आदिवासियों की जनसंख्या वाला राज्य मध्य प्रदेश में वर्ष 2003 से कांग्रेस की आदिवासी विरोधी नीतियों के चलते कांग्रेस पार्टी से दूर हुआ आदिवासी मतदाता और सत्ता पाने के लिये घसट रही वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आदिवासी फिर से प्रेम मोह जाग गया है और अब वह आदिवासियों की हितेषी बनने की कोशिश में जुट गया है इसकी कमान वर्तमान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया संभाला हुआ है और वह कमलनाथ क्षेत्र में विशेषकर आदिवासियों के बीच में काम करने वाले बिरसा बिग्रेड को साथ लेकर भरसक प्रयास कर रहे है कि कैसे भी कांग्रेस पार्टी में आदिवासी मतदाताओं का झुकाव हो जाये और उनका समर्थन कांग्रेस को मिल जाये । हम यह बता दे पूर्व में ही कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस को बरघाट के बिरसा बिग्रेड के प्रत्याशी ने कांग्रेस के उम्मीदवार अर्जुन सिंह काकोड़िया को अपना समर्थन नामांकन फार्म भरने के बाद दे दिया है जबकि बिरसा बिग्रेड के मंच में भाषण देने वाले यह कहते नहीं थकते थे कि हमें राजनीति नहीं करना है हमे मिशन का काम समाज का काम करना है लेकिन विधानसभा चुनाव के कुछ दिनों पहले से ही भी निरंतर कांग्रेस के संपर्क में थे और बिरसा बिग्रेड के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहूल गांधी से साथ भी हुई थी और राहूल गांधी के साथ बिरसा बिग्रेड के पदाधिकारियों की मुलाकात वाली फोटो सोशल मीडिया में बायरल हुई जिमसें क्रिया प्रतिक्रिया दोनो सामने आई थी । कांग्रेस के साथ राजनीतिक मिशन में बिरसा बिग्रेड के उतरने से जहां आदिवासियों में संगठन की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े हो रहे है तो वहीं उनके मिशन से जुड़े हुये लोग कांग्रेस की ओर झुकने लगे है जिससे कांग्रेस को यह लगने लगा है कि अब आदिवासी हमारे साथ आ सकते है लेकिन मध्य प्रदेश में अनेकोें आदिवासी समाज के संगठन काम कर रहे है उनमें कांग्रेस के प्रति क्या प्रतिक्रिया है इसको लेकर कांग्रेस के आलाकमान व कांग्रेस नेता दीपक बाबरिया संभवतय: अंजान है ।
दीपक बाबरिया ने छिंदवाड़ा कांग्रेस कार्यालय में लिया था बिरसा बिग्रेड की बैठक
सूत्र बताते है कि बिरसा बिग्रेड के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ छिंदवाड़ा कांग्रेस कार्यालय में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया के साथ बैठक हुई थी जिसमें कांग्रेस को समर्थन दिये जाने को लेकर चर्चा की बात सामने आई है और उसी के तहत कांग्रेस के नेता बिरसा बिग्रेड के सहारे मध्य प्रदेश में आदिवासियों के बीच में जाने की योजना बना रहे है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहूल गांधी के बाद कांग्रेसी नेताओं के साथ बिरसा बिग्रेड की हुई मुलाकात को लेकर आदिवासियों के बीच यह चर्चा भी चल रही है कि बिरसा बिग्रेड चुनाव के कुछ दिनों पहले से कांग्रेस के संपर्क में थे या फिर कुछ महिने पहले थे या फिर वर्षों पहले से कांग्रेस के साथ मिलकर सामाजिक मिशन का काम चला रहे थे इसको लेकर चर्चाओं का दौर जारी है अब सही क्या है यह तो बिरसा बिग्रेड के प्रमुख पदाधिकारी और कांग्रेस के नेता ही जानते है।मध्य प्रदेश में फिलहाल वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव चल रहे है और कांग्रेस आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के लिये तन-मन-धन से भिड़ी हुई है इस चुनाव में कांग्रेस को कितनी सफलता मिल पाती है या फिर बिरसा बिग्रेड के सहारे आदिवासी मतदाताओं में कहां तक सेंध लगा पाते है यह तो आने वाला परिणाम ही बतायेगा।