मध्य प्रदेश में साढ़े तीन लाख तो देश के 13 लाख से अधिक आदिवासियों पर विस्थापन का खतरा
मोदी सरकार मौन तो, राहूल गांधी ने कहा लड़ेंगे वंचितों की लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट ने बीती 13 फरवरी को एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए 21 राज्यों को आदेश दिए हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को जंगल की जमीन से बेदखल कर के जमीनें खाली करवाएं। कोर्ट ने भारतीय वन्य सर्वेक्षण को निर्देश दिए हैं कि वह इन राज्यों में वन क्षेत्रों का उपग्रह से सर्वेक्षण कर के कब्जे की स्थिति को सामने लाए और इलाका खाली करवाए जाने के बाद की स्थिति को दर्ज करवाए। ऐसा पहली बार हुआ कि देश की सर्वोच्च अदालत ने एक साथ लगभग 13 लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनकी रिहाइशों से बेदखल करने और जंगल खाली करवाने के आदेश सरकारों को दिए हैं। यह अभूतपूर्व फैसला है, जिसे जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कुछ स्वयंसेवी संगठनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 की वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका पर सुनाई करते हुए सुनाया है। इन संगठनों में वाइल्डलाइफ फर्स्ट नाम का एनजीओ भी है। वनाधिकार अधिनियम को इस उद्देश्य से पारित किया गया था ताकि वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक नाइंसाफी को दुरुस्त किया जा सके। इस कानून में जंगल की जमीनों पर वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी गई थी जिसे वे पीढ़ियों से अपनी आजीविका के लिए इस्तेमाल करते आ रहे थे। स्वयंसेवी संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी थी और वनवासियों को वहां से बेदखल किए जाने की मांग की थी। बीती 13 फरवरी को हुई सुनवाई में अदालत ने एक विस्तृत आदेश पारित करते हुए इक्कीस राज्यों को आदिवासियों से वनभूमि खाली कराने के निर्देश जारी कर दिए।
नई दिल्ली । गोंडवाना समय।एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 21 राज्यों से करीब 13 लाख से ज्यादा आदिवासियों और जंगल में रहने वाले समुदायों से जबरन जंगल खाली कराने का आदेश दिया है । हैरानी की बात ये है कि सरकार ने कोर्ट में इन समूहों के अधिकारों के बचाव के लिए अपना पक्ष तक नहीं रखा । इस मामले में उसकी तरफ से कोई भी वकील कोर्ट में पेश नहीं हुआ । अपने आदेश में राज्य सरकारों को 27 जुलाई तक आदिवासी समूहों से जंगल खाली कराने को कहा है । जाहिर है कि इस आदेश के बाद देश में जबरन विस्थापित किए गए आदिवासी समूहों की संख्या में बहुत तेज इजाफा होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश महज 16 राज्यों के सन्दर्भ में दिया है लेकिन देश के अन्य राज्य भी उसका यह आदेश मानने को बाध्य होंगे। कोर्ट का यह आदेश वन्य अधिकार अधिनियम के खिलाफ वन्यजीव समूहों की ओर से दायर याचिका पर आया है। इस मामले में याचिकाकतार्ओं में से एक गैर-सरकारी संगठन वाइल्डलाइफ फर्स्ट ने अपनी याचिका में कहा है कि वन्य अधिकार अधिनियम संविधान के खिलाफ है और इस अधिनियम की वजह से जंगल खत्म हो रहे हैं। उनका तर्क है कि अगर ये कानून लागू भी रहे तो भी जिन लोगों के जमीन पर दावे खारिज हो चुके हैं, राज्य सरकारों को उनसे जंगल खाली करा लेना चाहिए। इस तर्क पर सख्त रुख अपनाते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जिन जमीनों पर दावे खारिज हो चुके हैं, उन जमीनों को राज्य सरकारों को अगली सुनवाई तक या उससे पहले खाली करवा लेना होगा ।अगर ऐसा नहीं होता तो कोर्ट इस मामले पर कड़ा रुख अख्तियार करेगा। वर्तमान में 21 राज्यों 13,86,549 जिनके दावे जमीन पर खारिज किए जा चुके हैं और जिनकी जानकारी राज्य सरकारों ने कोर्ट को दी है। वन संरक्षण अधिनियम (2006) यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान पास हुआ था । यह कुछ निश्चित मानकों के आधार पर परंपरागत रूप से जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदायों और स्थानीय लोगों के भूमि अधिकारों को संरक्षण प्रदान करता है। इस कानून के तहत स्थानीय लोगों का विस्थापन अंतिम विकल्प है। हालांकि विस्थापन की स्थिति में यह लोगों का पुर्नस्थानापन का अधिकार भी प्रदान करता है। वन अधिकारी और कुछ वन्यजीव संरक्षण समूह मानते हैं कि इस कानून के जरिए जंगलों का अतिक्रमण हो रहा है वहीं, आदिवासी समूहों का तर्क रहा है कि जंगल की जमीन पर खारिज हुए उनके दावों की फिर से समीक्षा की जरुरत है । आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा बनाये गए नए नियमों के बाद यह समीक्षा और जरूरी हो गई है।
हालांकि इस मामले में ज्यादा आश्चर्य की बात है कि 13 फरवरी को सुनवाई के दौरान अधिनियम का बचाव करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में कोई भी वकील पेश नहीं हुआ था। जिसके कारण कोर्ट में आदिवासियों का पक्ष नहीं रखा गया। इसके बाद अरूण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए 10 लाख से ज्यादा लोगों को जंगल खाली करने का आदेश दे दिया। कोर्ट ने राज्य सरकारों को अगली सुनवाई तक जंगल खाली करवाने के साथ ही मामले पर विस्तृत रिपोर्ट जमा करने के आदेश भी दिए हैं। जानकार मान रहे हैं कि कोर्ट के आदेश से यह साफ नहीं है कि उसने इस मामले में राज्य सरकारों को जमीन खाली कराने का आदेश दिया है या उनसे खारिज दावों की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की नीयत पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गंभीर सवाल उठाए हैं उन्होंने कहा कि लाखों आदिवासियों को बेघर करने में मोदी सरकार की मौन सहमति शामिल रही है।
कांग्रेस हमारे वंचित भाई-बहनों के साथ खड़ी है
कांग्रेस अध्यक्ष राहूल गांधी ने 14 फरवरी को ट्वीट करते हुये यह कहा है कि भाजपा सुप्रीम कोर्ट में मूक दर्शक बनी हुई है । जहां वन अधिकार कानून को चुनौती दी जा रही है। वह लाखों आदिवासियों और गरीब किसानों को जंगलों से बाहर निकालने के अपने इरादे का संकेत दे रही है। कांग्रेस हमारे वंचित भाई-बहनों के साथ खड़ी है और इस अन्याय के खिलाफ पूरे दम से लड़ाई लड़ेगी।क्र. राज्य कुल दावा खारिज (आदिवासी और वनवासी)
1. आंध्र प्रदेश 66,351
2. असम 27,534
3. बिहार 4,354
4. छत्तीसगढ़ 20,095
5. गोवा 10,130
6. गुजरात 1,82,869
7. हिमाचल प्रदेश 2,223
8. झारखंड 28,107
9. कर्नाटक 1,76,540
10. केरल 894
11. मध्यप्रदेश 3,54,787
12. महाराष्ट्र 22,509
13. ओडिशा 1,48,870
14. राजस्थान 37,069
15. तमिलनाडु 9,029
16. तेलंगाना 82,075
17. त्रिपुरा 68,257
18. उत्तराखंड 51
19. उत्तर प्रदेश 58,661
20. बंगाल 86,144
21. मणिपुर
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कुल खारिज दावे 13,86,549
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मणिपुर के सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार चार हफ्ते के भीतर अनुपालन संबंधी हलफनामा दाखिल करेगी।